सुमित्रानंदन पंत की कविता – कुमाऊंनी में।

हिंदी में छायावाद युग के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को खूबसूरत पर्वतीय जिला अल्मोड़ा के कौसानी ग्राम में हुआ था। उनका बचपन प्रकृति की गोद में ही बीता और यहीं उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद आगे की पढ़ाई काशी और इलाहाबाद से पूर्ण की।

बचपन से ही सुमित्रानंदन पंत कवितायें लिखने लग गए थे। उनकी प्रमुख कृतियाँ वीणा, ग्रंथि, उच्छवास, पल्लव, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्ण-किरण, स्वर्णधूलि, कला, बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिंदबरा, सत्यकाम आदि हैं। उनके जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविताएं, पद्य-नाटक और निबंध शामिल हैं।


कविवर सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति के सुकुमार कवि कहा जाता है क्योंकि उन्हें प्रकृति से बेहद लगाव था। उनका बचपन प्रकृति की गोद में ही बीता। प्रकृति को ही उन्होंने माँ माना और इसी की गोद में बैठकर उन्होंने अपनी रचनाएँ लिखनी प्रारम्भ की। उनकी रचनाओं में प्रकृति का ही वर्णन है। अपनी जन्मभूमि कुमाऊं की खूबसूरत वादियों में खिले बुरांश के फूल पर उन्होंने एक कविता भी लिखी है। जो उनकी दुधबोली कुमाउँनी में है। उन्होंने बुरांश की खूबसूरती पर लिखा – ‘सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां’ यानि सारे जंगल में तेरे जैसा कोई नहीं है। (Kumauni Poem Sumitra Nandan Pant)

बुरांश पर कविवर सुमित्रानंदन पंत की कुमाऊंनी कविता –

सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां,
फुलन छै के बुरूंश! जंगल जस जलि जां ।

सल्ल छ, दयार छ, पई अयांर छ ,
सबनाक फाड़न में पुडनक भार छ ,
पै त्वि में दिलैकि आग, त्वि में छ ज्वानिक फाग ,
रगन में नयी ल्वै छ प्यारक खुमार छ ।

सारि दुनि में मेरी सू ज, लै क्वे न्हां ,
मेरि सू कैं रे त्योर फूल जै अत्ती माँ ।

काफल कुसुम्यारु छ, आरु छ, आँखोड़ छ,
हिसालु, किलमोड़ त पिहल सुनुक तोड़ छ,
पै त्वि में जीवन छ, मस्ती छ, पागलपन छ,
फूलि बुंरुश ! त्योर जंगल में को जोड़ छ?

सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां ,
मेरि सू कैं रे त्योर फुलनक म सुं हां ॥

 

अर्थातः अरे बुरांश सारे जंगल में तेरा जैसा कोई नहीं है। तेरे खिलने पर सारा जंगल डाह से जल जाता है, चीड़, देवदार, पदम व अंयार की शाखाओं में कोपलें फूटीं हैं पर तुझमें जवानी के फाग फूट रहे हैं, रगों में तेरे खून दौड़ रहा है और प्यार की खुमारी छायी हुई है।

नोट : यह कविता कविवर सुमित्रानंदन पन्त जी की अपनी दुदबोली कुमाऊंनी में एकमात्र कविता है। (Kumauni Poem Sumitra Nandan Pant)

 

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