शिखर-भनार मेला : जहाँ आस्था और संस्कृति का होता है समागम।

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Shikhar Temple Bageshwar

यूं तो उत्तराखंड की धरती पर तमाम पौराणिक और बड़ी आस्था के देवालय हैं, लेकिन यहां के कुछ मंदिरों के साथ लोगों की गहरी आस्था आज भी जुड़ी है। ऐसे ही पवित्र स्थानों में दो नाम हैं कपकोट के ‘शिखर’ और ‘भनार’ मंदिर। शिखर मंदिर में भगवान मूलनारायण और भनार में बजैंण देवता की पूजा होती है। ये दोनों स्थल लोगों की आस्था के प्रमुख केंद्र हैं। इसके साथ ही शिखर से हिम श्रृंखलाओं का सुंदर नयनाभिराम दृश्य नजर आता है। वहीं बजैंण देव जी का मंदिर वर्षों पुराने बाँज, बुरांश आदि के घने वृक्षों की छाँव में स्थित है। (Shikhar Bhanar Mandir)

कपकोट तहसील अंतर्गत शामा-मुनस्यारी जाने वाले मार्ग में शिखर नामक पर्वत पर भगवान मूलनारायण विराजमान हैं। इन्हें भगवान श्रीकृष्ण का स्थानीय रूप भी माना जाता है। मान्यता है कि त्रेतायुग में लोक कल्याण के लिए श्रीकृष्ण ने यह रूप धारण किया।
एक अन्य मान्यता के अनुसार मूलनारायण मघन नामक ऋषि और मायावती के पुत्र थे, जिन्होंने रमणीक शिखर पर्वत को निवास के लिए चुना। उनके ज्येष्ठ पुत्र का नाम बजैंण और कनिष्ठ पुत्र का नौलिंग था। बजैंण देव ने भनार गांव को अपनी निवास स्थली बनाया जबकि नौलिंग देव धरमघर क्षेत्र के सनगाड़ गाँव जाकर बस गए। इन्होंने यहाँ अपने-अपने क्षेत्र में दैत्यों का संहार करके जनता को उनके अत्याचार से बचाया था। आज नौलिंग का मंदिर सनगाड़ और बजैण का मंदिर भनार में स्थापित हैं। नौलिंग और बजैंण देवता के प्रति लोगों में गहरी आस्था है। यह दोनों ही स्थल अत्यंत रमणीक हैं। इनसे भी अधिक शिखर पर्वत का सौंदर्य है। जहां से हिमालय की चोटियां काफी नजदीक से महसूस होती हैं।

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Bhanar-Bajain Temple

शिखर-भनार का त्रयोदशी और चतुर्दशी मेला

शिखर और भनार मंदिर में हर वर्ष कार्तिक त्रयोदशी से पूर्णिमा तक आस्था का सैलाब उमड़ता है। त्रयोदशी पर्व पर भनार के बजैंण देवता मंदिर में पूजा आयोजित होती है। यहाँ रात को बड़ी आरती व नौबत पूजा होती है और देव डांगरों अवतरित होकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।

अगले दिन देव डांगर ढोल नगाड़ों की थाप पर अवतरित अवस्था में भक्तों के साथ शिखर पर्वत स्थित भगवान मूलनारायण जी के मंदिर को प्रस्थान करते हैं। यहाँ दिनभर श्रद्धालुओं का आवागमन रहता है। रात को शिखर मूलनारायण जी के मंदिर प्रांगण में ढोल नगाड़ों के साथ नौबत पूजा होती है. अगले दिन सभी देव डांगर भक्तों के साथ शिखर पर्वत स्थित मूलनारायण जी के मंदिर से भनार गाँव स्थित नौलिंग देवता के मंदिर के लिए प्रस्थान करते हैं और यहाँ मेले का समापन होता है। (Shikhar Bhanar Fair)

पहाड़ की संस्कृति को नजदीक से देखें यहाँ

शिखर-भनार मेले में पहाड़ की संस्कृति को भी नजदीक से देखने महसूस करने का मौका मिलता है। पैदल कठिन चढ़ाई चढ़कर आये भक्त रात भर ईश्वर की आराधना, झोड़ा चांचरी आदि में लीन रहते हैं, यही वो मेले हैं जहां हम अपनी नयी पीढ़ी को ले जाकर उनको अपनी समृद्ध सांस्कृतिक व आध्यात्मिक विरासत से परिचय करवा सकते हैं।

शिखर भनार मेला 2024

Bhanar Mela 2024 : बागेश्वर जिले के कपकोट तहसील के अंतर्गत ग्राम पंचायत भनार का परंपरागत त्रयोदशी और चतुर्दशी मेला दिनांक 13 नवंबर और 14 नवंबर 2024 को संपन्न हो गया है। दिनांक 14 नवंबर 2024 को श्री बंजैंण देवता मंदिर सुमालगाँव भनार में भव्य पूजा आयोजित की गई। यहाँ रात को बड़ी आरती व नौबत पूजा कर 14 नवम्बर 2024 की सुबह से शिखर मंदिर में भगवान मूलनारायण की पूजा संपन्न की गई।

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1 thought on “शिखर-भनार मेला : जहाँ आस्था और संस्कृति का होता है समागम।”

  1. श्री मूलनारायण जी पहले मूलनाग जी के नाम से जाने जाते थे जो कि कश्यप ऋषि के वंशज बताए जाते हैं। श्री हरि विष्णु जी के परम भक्त थे.. ऐसी भी किंवदंतियां हैं।

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