घुघुतिया 2025 : काले कौवा वाला त्योहार | Ghughutiya Festival Uttarakhand 

Ghughutiya Festival Uttarakhand : जनवरी के महीने में कभी पहाड़ गए हैं ? सुबह उठो तो, चारों तरफ क्या देखते हो, जैसे रात में किसी ने पाले की सफेद चादर बिछा दी हो। खेत, रास्ते, घर की छतें सब चांदनी से भी ज्यादा सफेद। अगर धूप मेहरबान हो तो दिन अच्छा कट जाता है और शाम का सहारा तो आग ही है। ज़िन्दगी थम सी जाती है ठण्ड में यहाँ। दिवाली से शुरू हुई कड़ाके की ठण्ड जनवरी तक अपने पूरे शबाब पर होती है और ऐसे में आता है काले कौआ वाला त्योहार यानी घुघुतिया।

मकर संक्रांति के आसपास देश के हर कोने में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है। पंजाब लोहड़ी में नाचता है, तो दक्षिण भारत खासकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का तो पोंगल या संक्रांति दशहरे के बाद दूसरा बड़ा त्योहार है। उत्तर भारत में मकर संक्रांति पर आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से पट जाता है, तो धार्मिक नगरियों जैसे इलाहाबाद और हरिद्वार में आज के दिन गंगा स्नान का बड़ा महत्व है, और अगर कुम्भ का स्नान हो तो भीड़ के सारे रिकार्ड्स टूट जाते हैं। ऐसे में दुनिया की आपाधापी से कहीं दूर पहाड़ों में ठण्ड से थम गयी लाइफ को जगाने, लोगों लोगों को याद दिलाने, कि बस अब ठण्ड जाने वाली है, आता है ‘घुघुतिया त्योहार‘।

Ghughutiya Festival Uttarakhand

उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में मकर संक्रांति ‘घुघुतिया’ के नाम से मनाई जाती है, जिसे लोग शार्ट में ‘घुघुती त्यार ‘ या ‘उत्तरैणी’ भी बोलते हैं। घुघुतिया मुख्य रूप से बच्चों का त्यौहार है। इस दिन कौवों की बड़ी पूछ होती है, बुला बुला के कौवों को पकवान खिलाये जाते हैं। कुमाऊं में इस सन्दर्भ में एक फ्रेज भी फेमस है-

न्यूती वामण और घुघुतिक कौ

मतलब श्राद्धों या नवरात्रों में ब्राह्मण का मिलना और घुघुती त्यार के दिन कौवे का मिलना एक समान है अर्थात बड़ा मुश्किल है।

Ghughutiya Festival Uttarakhand
Ghughutiya Festival Uttarakhand

घुघुतिया या उत्तरैणी मनाने का कारण वही है जो मकर संक्रांति बनाने के पीछे है। सूर्य इस दिन से उत्तरायण हो जाता है, इसीलिए इसे उत्तरैणी भी कहते हैं। इस दिन से ठण्ड घटनी शुरू हो जाती है, प्रवासी पक्षी जो कि ठण्ड के कारण गरम क्षेत्रों की ओर  प्रवास कर गए थे, पहाड़ों की ओऱ लौटना शुरू करते हैं। इन्ही पंछियों के स्वागत का त्यौहार है घुघुतिया, जिसका नाम भी एक पहाड़ी चिड़िया के नाम पर है, जिसे कुमाँऊनी में ‘घुघुती’ कहते हैं।

घुघुतिया त्यौहार की पहचान पकवानों से है। आग के चारों ओऱ पूरा परिवार बैठता है, और गुड़ और दूध में गुंथे हुए गेहूं के आटे से अनेक तरह की छोटी-छोटी आकृतियां बनाई जाती हैं, जैसे तलवार, डमरू, ढाल, दाड़िम , शक्करपारा (कुमाँऊनी में खजूर) , मंदी आंच में तलकर इन आकृतियों को नारंगी यानि कि संतरे के साथ गूंथ कर मालाएं बनायी जाती हैं। अगले दिन सुबह पकवानों की माला गले में लटकाये बच्चे “काले कौवा काले , घुघती माला खा ले” कह-कह के कौवों को बुलाते हैं और पकवान खिलाते हैं। आस पड़ोस में पकवानों की अदला बदली होती है, ख़ुशी से बच्चे चिल्लाते हैं तो गाँव-मोहल्लों में सुबह-सुबह चहल-पहल देखने लायक होती है। जो बच्चे किसी कारणवश दूर परदेस में होते हैं, माएं या दादी-नानी उनके लिए माला बनाकर सहेज के रखती हैं, ताकि उनके घर आने पर उन्हें पहना के खिला सकें या किसी परदेस जाने वाले मुसफ़िर के हाथ भेज सकें। दोपहर तक चलने वाला ये त्यौहार प्रायः माघ की खिचड़ी (काले मास की खिचड़ी) के लंच के साथ खत्म होता है।

अगर आप पहाड़ की संस्कृति तथा रहन-सहन का सूक्ष्म विश्लेषण करेंगे तो जान पाएंगे कि “कम संसाधनों में भी सुखी और सम्मानजनक जीवन कैसे जिया जाता है।” हर संसाधन की कमी है, पर लोग सुखी हैं, संतुष्ट हैं। ठण्ड कड़ाके की पड़ती है पर ठण्ड से कोई मरता नहीं और ठण्ड में नींद भी और गहरी आती है वहां पर। अगर प्रकृति की गोद में सच्ची शांति और सुकून का अनुभव करना हो तो कुछ दिन गुज़ार कर आइये पहाड़ के किसी छोटे से गाँव या कस्बे में।

Ghughutiya Festival 2025 : इस साल घुघुतिया त्योहार 14 जनवरी 2025 को मनाया जायेगा। परम्परानुसार इस दिन उत्तराखंड के कुमाऊँ में आटे और गुड़ के घोल से एक ख़ास प्रकार के पकवान बनाया जायेगा जिन्हें ‘घुघुते’ कहते हैं। साथ ही इन घुघुतों को कौओं को खिलाये जायेंगे। बच्चे इनकी माला बनाकर गले में भी धारण करते हैं। 

लेखक – श्री रितेश तिवारी
चित्रण: अनजान मुसाफिर

Vinod Gariya

ई-कुमाऊँ डॉट कॉम के फाउंडर और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर हैं। इस पोर्टल के माध्यम से वे आपको उत्तराखंड के देव-देवालयों, संस्कृति-सभ्यता, कला, संगीत, विभिन्न पर्यटक स्थल, ज्वलन्त मुद्दों, प्रमुख समाचार आदि से रूबरू कराते हैं।

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