Golu Devta Mandir: गोलू देवता के प्रसिद्ध मंदिर और लोकगाथा।

Golu Devta Mandir

Golu Devta Mandir: ‘न्याय के देवता’ के रूप में ख्याति प्राप्त गोलू देवता उत्तराखंड में जनमानस के आराध्य हैं। ये देवभूमि में लोकदेवता के रूप में पूजित हैं और उनकी पूजा मुख्यतः कुमाऊं में लोग घर-घर में करते हैं। इन्हें लोग गोलू के अलावा ग्वेल, गोलज्यू, गोलू राजा, बाला गोरिया, गौर भैरव आदि नामों से भी जानते हैं। गोलू देवता को भगवान शिव और कृष्ण दोनों का अवतार माना जाता है। ये यहाँ न्याय और सत्य के प्रतीक माने गए हैं और इन्हें न्यायकारी, दूधाधारी और कृष्णावतारी आदि विभूषणों से विभूषित किया गया है।

उत्तराखंड में गोलू देवता के प्रसिद्ध मंदिर चितई (अल्मोड़ा), घोड़ाखाल (नैनीताल) और चम्पावत में हैं। जहाँ स्थानीय लोगों के अलावा देश-विदेश से हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुँचते हैं। कुमाऊं में हर गांव में तथा ऐसे ही घर के अन्दर भी गोलू देवता का मंदिर आवश्यक रूप से होता है। स्थानीय लोग नवरात्रों में देवी भगवती के साथ इनकी पूजा करते हैं। गोलू देवता का मूल स्थान चंपावत माना जाता है। स्थानीय जनश्रुति के अनुसार घोड़ाखाल (नैनीताल) और चितई (अल्मोड़ा) की शाखाएं चंपावत मूल मंदिर की ही हैं। इन्हें घोड़ाखाल और चितई में स्थापित किए जाने का श्रेय माहरा गांव की एक महिला को जाता है। माना जाता है कि अपने परिवार के सदस्यों द्वारा सताई जा रही इस महिला ने चंपावत में गोरल देव मंदिर में गोलज्यू से न्याय के लिए साथ चलने की विनती की थी। उस महिला की विनती सुनकर भगवान गोलज्यू की चितई और घोड़ाखाल में स्थापना हुई।

गोलू देवता की कथा और इतिहास

गोलू देवता के जन्म और उनकी महिमा से जुड़ी एक लोकगाथा प्रचलित हैं। जिसके अनुसार, वे कत्यूरी वंशी राजा झालुराई और रानी कलिंगा के पुत्र थे, जो अपनी सत्यनिष्ठा और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध हुए। इनके जन्म पर उत्तराखंड में एक लोकगाथा प्रचलित है। कहा जाता है कि झालुराई एक न्यायप्रिय और दयालु राजा थे। उनके राज्य में चारों तरफ खुशहाली थी, प्रजा खुश थी। दुःखी थे तो सिर्फ राजा झालुराई क्योंकि सात रानियां होने के बावजूद उनकी कोई संतान नहीं थी।

एक बार राजा झालुराई को किसी ज्योतिषी ने संतान सुख प्राप्त करने के लिए भगवान भैरव की तपस्या कर प्रसन्न करने को कहा। ज्योतिषी द्वारा बताये गए इस उपाय पर उन्होंने भगवान भैरव की उपासना की। भगवान भैरव ने उन्हें प्रसन्न होकर दर्शन दिए और इच्छित वरदान देते हुए कहा – मैं स्वयं एक पुत्र के रूप में आपके घर में जन्म लूंगा लेकिन इसके लिए आपको आठवां विवाह करना होगा क्योंकि आपकी सातों रानियां मुझे गर्भ में धारण करने योग्य नहीं हैं।

राजा झालुराई का आठवां विवाह पंचदेवों की बहन कलिंगा के साथ हुआ। लेकिन सौतिया डाह से सातों रानियां अब रानी कलिंगा से जलने लगे। इस बीच रानी कलिंगा ने गर्भधारण किया। राजा और प्रजा इस सूचना से खुश थे। वहीं सातों रानियां षड़यंत्र का तानाबाना बुन रही थी। अब वे गर्भवती रानी के प्रति प्रेमभाव दिखाने लगी। वे कलिंगा के मन में गर्भ के प्रति तरह-तरह की डरावनी बातें भरने लगे थे। जब कलिंगा का प्रसव का समय आया तो उन्होंने उसके आँखों में पट्टी बाँध दी और पैदा हुए बालक को गौशाले में गायों के पैरों से नीचे डाल दिया ताकि बालक दब-कुचलकर वहीं मर जाये।

बालक तो अवतारी था। सौतेली माँओं के इस कृत्य का बालक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह गायों का दूध पीकर किलकारियां मारने लगा। वहीं प्रसव के बाद रानी कलिंगा के आँखों की पट्टियां खोल दी गई। सातों रानियों के उसे खून से सने सिलबट्टे को दिखाया और बताया कि उसने इस सिलबट्टे को जन्म दिया है। उसके बाद बच्चे को उन्होंने गौशाले से निकाल कर बिच्छूघास की झाड़ियों के अंदर डाल दिया पर वहां से भी बालक हँसते हुए बाहर निकल आया। उन्होंने बालक को नमक के ढेर में दबा दिया, लेकिन नमक भी शक्कर में बदल गया।

सातों रानियों ने बालक को एक संदूक में बंद करके काली नदी में बहा दिया। बालक के चमत्कार ने बक्से को भी नहीं डूबने दिया। सात रात बहते-बहते आठवे दिन यह बक्सा गौरीहाट में पहुंचा। वह वहां भाना नाम के मछुआरे के जाल में फंस गया। बालक को पाकर निःसंतान मछुवारा भगवान के चमत्कार पर नतमस्तक हो गया। वह बालक को घर ले गया। बालक धीरे-धीरे बड़ा हो गया। उसने अपने लिए घोड़े की मांग की। उसे मछुआरे द्वारा काठ यानी लकड़ी का घोड़ा बनाकर दिया गया। बालक ने इस काठ के घोड़े में जान डाल दी। वह अब इस घोड़े से दूर -दूर तक जाने लगा।

एक बार बालक अपने काठ के घोड़े के साथ किसी नौले पर गया। वहां राजा की सातों रानियां थी। बालक ने रानियों को हटाते हुए अपने लकड़ी के घोड़े से पानी पाने को कहा। बालक के इस मूर्खता भरे कारनामों को देखकर इस रानी ने कहा –

“काठ का घोड़ा भी कहीं पानी पी सकता है ? “

बालक ने तुरंत उत्तर दिया –

“क्या कोई जननी सिलबट्टे को जन्म दे सकती है ?”

बालक के इस उत्तर को सुन सातों रानी अवाक रह गई और अपने बर्तनों को वहीं छोड़ राजमहल भाग गई। वहां पहुंचकर वे राजा से उस बालक की अभद्रता की शिकायत करने लगे। बालक को पकड़कर राजा के पास ले जाया गया।

राजा झालुराई ने पूछा – एक काठ के घोड़े को तुम कैसे पानी पिला सकते हो ?

बालक ने उत्तर दिया – जिस राजा के राज्य में एक जननी सिलबट्टा पैदा कर सकती है तो वहां काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है।

बालक ने अपने पूरे जन्म की घटना राजा को बताई और कहा कि न केवल मेरी माँ कलिंगा से घोर अन्याय हुआ है बल्कि तुम छले गए हो। राजा ने सातों रानियों को बंदीगृह में डाल दिए। लेकिन बालक के अनुरोध पर राजा ने उन्हें दासियों की भांति जीवन यापन के लिए छोड़ दिया। बालक ने बड़ा होकर राजा झालुराई का राजकाल संभाला। त्वरित न्याय के लिए वे पहचाने जाने लगे। कालांतर में वे गोलू, ग्वेलज्यू, बाला गोरिया आदि नामों से प्रसिद्ध हुए और प्रजा द्वारा पूजे जाने लगे। विस्तृत लोककथा पढ़ने के लिए आप इस लिंक पर जाएँ – गोलू देवता की लोककथा। आज भी गोलज्यू की पहचान त्वरित न्याय देने वाले देवता के रूप में होती है। ये हैं उनके तीन प्रसिद्ध मंदिर, जहाँ हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुँचते हैं।

चितई गोलू मंदिर-अल्मोड़ा

Chitai Golu Devta Mandir: गोलू देवता का यह मंदिर अल्मोड़ा से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर चितई नामक स्थान पर है। जहां लोग चिट्ठी लिखकर न्याय और मन्नत मांगते हैं। उनकी अदालत में लोग अपनी समस्याओं को हल करने के लिए चिट्ठियां लिखते हैं। भक्त यहां न्याय प्राप्त करने के लिए चिट्ठी लिखकर मंदिर में अर्पित करते हैं, और मान्यता है कि गोलू देवता अपने भक्तों की मन्नतें पूरी करते हैं और उन्हें न्याय दिलाते हैं। मंदिर में आपको हर जगह चिट्ठियों के ढेर लगे मिलेंगे, जिनमें लोग अपनी समस्याओं और मन्नतों का विवरण लिखते हैं। इसके अलावा, जब भक्तों की मन्नत पूरी होती है, तो वे मंदिर में घंटी चढ़ाते हैं। इस वजह से मंदिर में हजारों घंटियां भी लटकी हुई देखी जा सकती हैं, जो भक्तों की श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक हैं।

Golu Devta mandir
Chitai Golu Devta Mandir

मूल मंदिर के निर्माण के संबंध में हालांकि कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, पर पुजारियों के अनुसार 19वीं सदी के पहले दशक में इसका निर्माण हुआ था। तमाम आधुनिकताओं के बावजूद स्थानीय लोगों का गोलू देवता पर आस्था बरकरार है।

अदालत का खर्च वहन नहीं कर पाने वाले तथा अन्याय,क्लेश व विपदा से पीड़ित लोग इस मंदिर में अपनी पुकार लगाने व मनौती मांगने प्रतिदिन आते रहते हैं। मंदिर के अंदर और बाहर सैकड़ों की तादाद में लगे स्टांप और आवेदन पत्र इसकी गवाही देते हैं। गोलू देवता के दरबार में अधिकतर कानूनी मुकदमे, न्याय, व्यवसाय, स्वास्थ्य, मानसिक परेशानी, नौकरी, गलत अभियोग,जमीन जायदाद व मकान निर्माण से जुड़े विषयों पर अर्जियां लगाई जाती हैं। मनौती पूर्ण होने लोग मंदिर में अपनी सामर्थ्य के अनुसार घंटियां चढ़ाते हैं।

आज भी समाज का एक बड़ा वर्ग उनके इस न्याय को स्वीकार करता है। इस मंदिर में सारे साल कभी भी आकर पूजा की जा सकती है। देश ही नहीं विदेश से भी लोग आकर मन्नत मांगते हैं और कई चमत्कारों को देख कर विदेशी नतमस्तक हो जातें हैं।

कैसे पहुंचें : चितई गोलू मंदिर अल्मोड़ा से करीब 08 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व में स्थित है। नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम से जो यहाँ से करीब 98 किलोमीटर दूर है। 

गोलू देवता मंदिर-घोड़ाखाल

Golu Devta Mandir Nainital: गोलू देवता का यह प्रसिद्ध मंदिर नैनीताल के निकट घोड़ाखाल नामक स्थान पर है। जहाँ न्याय की चाह में सैकड़ों लोग यहाँ हर वर्ष पहुँचते हैं। लाखों की संख्या में लगी घंटियां मंदिर से लोगों की अपार श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक हैं। मान्यता है कि अदालती इंसाफ न मिलने पर मंदिर में फरियाद करने वालों को प्राकृतिक न्याय की प्राप्ति होती है। सदियां बीत गई मगर गोलू मंदिर की चौखट पर न्याय की गुहार लगाने का सिलसिला जारी है। मंदिर में जमीन-जायजाद बंटवारे, फौजदारी के मामलों के साथ ही पढ़ाई, रोजगार में सफलता के लिए आशीर्वाद पाने संबंधी अनुरोध एवं मन्नतें पूरी करने की मांगों के पत्रों और अर्जियों की भरमार है।

कैसे पहुंचें : घोड़ाखाल स्थित गोलू देवता मंदिर भवाली के निकट है। नैनीताल से यहाँ की दूरी करीब 13 किलोमीटर है। वहीं यह कैंची धाम मंदिर मार्ग के पास ही स्थित है। 

गोलू देवता उत्तराखंड के लोगों के साथ-साथ उन पर विश्वास करने वाले लाखों लोगों के आराध्य है। वे यहाँ की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक अद्भुत उदाहरण हैं। न्याय और सत्य के इस देवता के प्रति श्रद्धा लोगों को यह विश्वास दिलाती है कि सत्य की जीत अवश्य होती है।

इतिहास में अंकित है कि गोलू देवता उत्तराखण्ड के न्यायप्रिय राजा रहे हैं, इनके दरबार में लोग न्याय की आशा में आते और उचित न्याय पाकर गोलू राजा की जय-जयकार करते वापस जाते थे। इनकी न्यायप्रियता ने इन्हें लोगों के दिलों में अंकित कर दिया और लोग इनकी पूजा करने लगे, परिणाम स्वरुप आज गोलू देवता घर-घर में सम्मान के साथ पूजे जाते हैं।

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