Basant Panchami 2025: बसंत पंचमी विद्या की देवी माँ सरस्वती के पूजन और ऋतु परिवर्तन का पर्व है। देश के विभिन्न भागों में सनातन धर्म को मानने वाले लोग इस पर्व को बड़े धूमधाम से अपने पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ मनाते हैं। वहीं उत्तराखंड में इस पर्व का विशेष महत्व है, यहाँ यह पर्व प्रकृति, कृषि , लोक संस्कृति और आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ है। स्थानीय लोग इस पर्व को ‘सिर पंचमी’ के नाम से जानते हैं।
उत्तराखंड में बसंत पंचमी का दिन बेहद शुभ माना जाता है। इस तिथि को लोग किसी भी शुभ कार्य को बिना लग्न सुझाये संपन्न करवाते हैं। सिर पंचमी के नाम से पहचाने जाने वाले इस पर्व के दिन यहाँ स्थानीय नदियों को गंगा समान मानकर स्नान करने की परम्परा है। आईये विस्तृत में जानते हैं यहाँ वसंत पंचमी की परम्पराओं और महत्व के बारे में –
सिर पंचमी के नाम से प्रसिद्ध है यहाँ बसंत पंचमी
उत्तराखंड में बसंत पंचमी के दिन जौ के पौधों को घर के प्रवेश द्वार लगाने और सिर पर चढ़ाने का विशेष महत्व है। इस दिन सर्वप्रथम इन पौधों को खेतों से न्यूतकर (आमंत्रित कर) घर पर लाया जाता है और घर में स्थापित मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है। फिर एक या दो पौधों को जड़ समेत गाय का गोबर मिश्रित गारे से मंदिर में लगाया जाता है। तत्पश्चात ‘जी रया, जागि रया‘ की शुभकामना के साथ परिवार के अन्य लोगों के सिर पर रखा जाता है और इन पौधों को घरों की चौखट पर गाय के गोबर के साथ लगाया होता है। ये पौधे यहाँ हरियाली और धन-धान्य के सूचक माने जाते हैं।
- उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में धार्मिक मान्यताओं को विशेष महत्व दिया जाता है। बसंत पंचमी के दिन को यहाँ पवित्र दिनों में एक एक माना जाता है। इस दिन लोग यहाँ पीले वस्त्र धारण करते हैं और बच्चों का विद्यारम्भ इसी तिथि से करवाई जाती है। बच्चों को पुस्तक, पेंसिल आदि भेंट की जाती हैं। इस अवसर पर पीला रुमाल भेंट करने की भी परम्परा है।
- बसंत पंचमी का यह दिन उत्तराखंड में बेटी की सगाई करने के लिए भी बेहद शुभ माना जाता है। वहीं इस दिन को लोग विवाह के लिए शुभ मुहूर्त भी निकलवाते हैं। इस दिन बच्चों का अन्नप्रासन, बटुकों के जनेऊ संस्कार सम्पन्न करवाए होते हैं। वहीं बसंत पंचमी के दिन बहुत से लोग अपने नए घर में प्रवेश करते हैं। कृषक वर्ग इस दिन से अपने खेतों में हल जुताई का कार्य प्रारम्भ करते हैं।
- कुमाऊं में गाई जाने वाली बैठकी होली बेहद ख़ास होती है। वसंत पंचमी से इस बैठकी होली में श्रृंगार रस के होली गीतों को गाने की शुरुआत हो जाती है। इससे पूर्व पूष के प्रथम रविवार से प्रारम्भ हुई इस बैठकी होली के गीतों के माध्यम से देवी-देवताओं की स्तुति की जाती है, जिसे निर्वाण की होली कहते हैं।
- बसंत पंचमी का दिन उत्तराखंड में होने वाली चारधाम यात्रा के लिए के लिए भी एक महत्वपूर्ण दिन होता है क्योंकि इस दिन बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि निकाली जाती है। यह तिथि टिहरी राजदरबार में एक भव्य कार्यक्रम में निर्धारित की जाती है।
माँ सरस्वती के प्रकट होने का दिन
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माघ शुक्ल पंचमी तिथि को देवी सरस्वती प्रकट हुई थी, तब देवताओं ने देवी की स्तुति की, स्तुति से वेदों की ऋचाएं बनीं और उनसे वसंत राग बना। इसलिए इस दिन को बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है और सरस्वती पूजन के साथ बच्चों के विद्यारम्भ का विधान है। यह पर्व जीवन और प्रकृति की सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
बसंत पंचमी को ऋतुराज बसंत के आगमन पर स्वागत पर्व के ररूप में भी मनाया जाता है। पेड़ों में नयी कोपलें आने लगती हैं। रंग-बिरंगे फूलों के खिलने की शुरुआत होने लगती है। मंद-मंद बासंती बयार सबको सुखद अहसास दिलाने लगती है।
बसंत पंचमी का पर्व उत्तराखंड में सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि शिक्षा, कृषि, प्रकृति, लोक संस्कृति और आध्यात्म से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व नई ऊर्जा, सकारात्मकता और बसंत ऋतु के सौंदर्य को दर्शाता है।
Basant Panchami 2025
सूखे पत्ते झड़ गए, चहुंओर छाई हरियाली।
धरा ने ओढ़ ली चादर फूलों वाली।
शीतल बयार, गुनगुनी धूप लाई है।
अलौकिक छटा लिए बसंत ऋतु आई है।
समस्त प्रकृति में प्रेम, सौहार्द एवं शुभता का संचार हो; हर दिशा ज्ञान के प्रकाश से उजियारी हो; मंगल पुष्पों से धरा सुखी रहे, मां सरस्वती से यही प्रार्थना है।