फूलदेई त्योहार 2025 : जहाँ हर घर की दहलीज पर फूल बरसाते हैं बच्चे।

Phool dei Festival

Phool dei Festival : पहाड़ों में सर्दियों का मौसम समाप्त होते ही बसंत अपनी दस्तक देना शुरू कर देता है। पेड़-पौधों में नयी-नयी कोपलें फूटने के लिए आतुर रहती हैं। धीरे-धीरे चारों ओर हरियाली छाने लगती है और फूल खिलने प्रारम्भ हो जाते हैं। गांव-घरों के आसपास प्योंली के फूलों से बहार आने लगती है, वहीं जंगल में लाल सुर्ख बुरांश के फूल हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इस बीच पहाड़ के नन्हें बच्चों को ये फूल उनके लोकप्रिय त्योहार ‘फूलदेई’ की याद दिलाने लगते हैं।

फाल्गुन का महीना समाप्त होते ही नए वर्ष का पहला महीना चैत्र का आगमन होता है और इसी माह की पहली तिथि यानी संक्रांति को उत्तराखंड में ‘फूलदेई’ का त्योहार मनाया जाता है। जो मुख्यतः छोटे बच्चों द्वारा मनाया जाता है। परम्परानुसार इस दिन बच्चे लोकगीत गाते हुए अपने गांव घरों की हर दहलीज पर फूल की पंखुड़ियां अर्पित कर घर की सुख समृद्धि की कामना करते हैं। फूलदेई का यह त्योहार उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और परम्परा का प्रतीक पर्व है।

हिन्दू नववर्ष और बसंत के आगमन पर स्वागत पर्व के रूप में मनाये जाने वाले इस त्योहार को कुमाऊँ में ‘फूलदेई’ और गढ़वाल में ‘फूल संक्रांत’ कहते हैं। वहीं फूलदेई त्योहार को स्थानीय लोग ‘फुली-त्यार’ के नाम से भी जानते हैं। कुमाऊँ में यह त्योहार चैत्र माह की संक्रांति तिथि यानी प्रथम दिन को मनाया जाता है, वहीं गढ़वाल में 8 से 15 दिन तक इस पर्व को मनाने की परम्परा है। साथ ही टिहरी के कुछ क्षेत्रों में यह पर्व एक माह तक चलता है। आईये विस्तृत में जानते हैं फूलदेई के बारे में –

अन्य नाम फुलदेई, फूल संक्रांद, फुली त्यार, गोगा
मनाने की तिथि हर वर्ष चैत्र माह की सौर संक्रांति पर। जो ग्रिगोरियन कैलेंडर के अनुसार 14 या 15 मार्च के दिन मनाया जाता है।
मनाने की अवधि एक दिन, कुछ क्षेत्रों में 8 से 15 दिन तक भी आयोजित होता है इसका उत्सव।
मनाने की विधि छोटे बच्चों द्वारा घरों की दहलीज पर फूल डाले जाते हैं।

फूलदेई की तैयारियां बसंत में खिले नए-नए फूलों को चुनने से होती है। जो एक दिन पूर्व ही पूर्ण कर ली जाती हैं। लोग अपने घरों की देहरी को ऐपण बनाकर सजाते हैं। वहीं रिंगाल की टोकरियों को भी वसुधारे डाल कर फूलदेई के लिए सुसज्जित करते हैं। उनके माता-पिता और बड़ी दीदियां इस काम में उनके सहायक होते हैं। उनके द्वारा आसपास के जंगल से बुरांश के फूल लाये जाते हैं। खेतों के उगे भिटौर, घर के आसपास खिले प्योंली के फूलों को बच्चे आसानी से एकत्रित कर कर लेते हैं। वहीं आड़ू खुमानी और सरसों के कुछ फूल भी टोकरी में सजाने के लिए तोड़े जाते हैं।

चैत्र माह की सौर संक्रांति के दिन बच्चे स्नान कर फूल की टोकरियों के साथ सर्वप्रथम अपने घर की दहलीज पर फूल डाले जाते हैं और ईजा (माँ) या अम्मा (दादी) द्वारा उन्हें चावल और गुड़ दिया जाते है। फिर वे गांव के अन्य घरों में फुलारी बनकर जाते हैं और हर घर की देहरी पर पारम्परिक गीत ‘फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार’ गाते पुष्प अर्पित करते हैं। हर घर को इन फुलारियों का इंतजार रहता है। उन्हें ख़ुशी-खुशी बदले में उन्हें चावल, गुड़ और कुछ सिक्के प्रदान किये जाते हैं।

हर घर की दहलीज पर फूल डालने के पश्चात उपहार में मिले गुड़ और चांवल के साथ फुलारी अपने घरों को लौट आते हैं। फिर शाम को इन गुड़ और चांवल से एक विशेष प्रकार का पकवान ‘साई’ बनाया जाता है। आस-पड़ोस में फूलदेई त्योहार के पकवान वितरित किये जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में फूलदेई के दिन घोघा (सृष्टि की देवी ) की पूजा करने की परम्परा है। बच्चे देवी की डोली बनाकर देव-डोलियों की तरह घुमाते हैं और अंतिम दिन पूजा कर चांवल और गुड़ से बने प्रसाद का विरतण करते हैं।

Happy Phool dei Festival
Happy Phool dei Festival

फूलदेई त्योहार का महत्व

  • प्रकृति से जुड़ाव : फूलदेई का त्योहार प्रकृति और मनुष्य के बीच जुड़ाव का एक प्रमुख उदाहरण है, जो छोटे बालक, बालिकाओं के द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार बसंत ऋतु के आगमन और प्रकृति का आभार प्रकट करने का उत्सव है।

  • सामाजिक समरसता : इस त्योहार पर बच्चे हर घर की दहलीज पर फूल डालकर उसकी समृद्धि की कामना करते हैं। बचपन से ही इस प्रकार की भावनाओं से उनके मन मस्तिष्क पर सकारातमक प्रभाव आता है, उनमें समाज में मेलजोल एवं आपसी प्रेमभाव की धारणा जाग्रत होती है।

  • सांस्कृतिक धरोहर : फूलदेई उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है, जिसको मनाने की परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। यह पर्व उत्तराखंड की स्थानीय परम्पराओं और रीति – रिवाजों को जीवंत रखता है। बच्चों में इस तरह के रोचक पर्व उन्हें उनकी संस्कृति से जोड़ते हैं। 

  • बच्चों का त्योहार : फुलदेई को उत्तराखंड का ‘बालपर्व’ कहा जाता है। इस त्योहार पर बच्चों की ही प्रमुख भूमिका रहती है। यह त्योहार उनके लिए एक ख़ास दिन होता है। वे उत्साहित होकर फूल डालने जाते हैं और ख़ुशी का अनुभव करते हैं। 

फूलदेई का लोकगीत

फूलदेई, छम्मा देई
दैंणी द्वार, भर-भकार
यो देई कैं बारम्बार नमस्कार
फूले द्वार, फूलदेई-फूलदेई

जिसका भावार्थ है – “आपकी देहरी फूलों से भरी हो और क्षमाशील हो। यह घर सुफल हो और इसके कुठार भण्डार अन्न से भरे रहें। इस घर को हमारा नित-नित नमस्कार है। यह घर सदैव फूला-फला रहे।”

फूलदेई मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा

उत्तराखंड में फूलदेई का त्योहार क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि शीत ऋतु में जब भगवान शिव कैलाश पर्वत पर तपस्या में लीन हो गए तो उन्हें पता ही नहीं चला कि वसंत ऋतु का आगमन हो गया है। तब मां पार्वती ने उनके सभी गणों को छोटे बालक, बालिकाओं का रूप देकर उन्हें वनों से फूल एकत्रित कर लाने व कैलाश पर्वत को फूलों से सजाकर सुगंध से भरने के लिए कहा, ताकि भगवान शिव की तंद्रा टूट सके और वे सांसारिक जीवन में लौट सकें। जब भगवान शिव ने छोटी कन्याओं को इस प्रकार से फूलों से बिखेरते हुए देखा तो वह क्रोध के बजाय आनंदित हो गए। तब सभी ने उनसे क्षमा मांगते हुए सृष्टि के कल्याण की प्रार्थना की। बस तभी से पर्वतवासी इस त्योहार को धार्मिक, सामाजिक एवं उत्साहवर्धन के साथ आनंदित होकर प्रतिवर्ष मनाते हैं। इसे फूलदेई के नाम से जाना जाता है।

प्योंली की याद में फूलदेई

उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में बसंत के मौसम में एक खूबसूरत पीला फूल खिलकर चारों ओर खूबसूरती बिखेरता है। जिसे लोग ‘प्योंली’ या फ्योंली के नाम से जानते हैं। पहाड़ों में इस पर एक लोककथा प्रचलित है। कथानुसार प्योंली एक सुन्दर वनकन्या थी। उसका विवाह एक राजकुमार से हुआ और वह राजमहल चली गई। महल की चकाचौंध से वह असहज होने लगी। उसने राजकुमार से अपने मायके जाने की विनती की लेकिन उसे मायके नहीं भेजा गया। मायके की याद में एक दिन उसने अपने प्राण त्याग दिये। उसकी इच्छानुसार मायके के पास ही दफना दिया गया। कुछ दिनों बाद वहां पर एक पीला फूल खिला, जिसे लोगों ने प्योंली नाम दिया। कहते हैं उसी की याद में फूलदेई का त्योहार मनाया जाने लगा। एक लोककथा को विस्तृत में यहाँ पढ़ें – प्योंली के फूल की अमर कथा

बालपर्व के रूप में मनाया जाने वाला फूलदेई त्योहार उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न अंग है। यह प्रकृति प्रेम, सामाजिक सौहार्द, पारंपरिक लोकसंस्कृति और नयी शुरुआत का प्रतीक पर्व है। बदलते दौर में हमें प्रकृति से जुड़े इस प्रकार के पर्वों को उत्साह के साथ मनाने की आवश्यकता है। ताकि हमारी पीढ़ी इन पर्वों का महत्व समझ सके।

Phool dei Festival 2025 : इस साल फूलदेई का त्योहार 14 मार्च 2025 को मनाया जायेगा। परंपरानुसार उत्तराखंड में बच्चे इस पर्व पर बसंत ऋतु में खिले नए फूलों को गांव के हर घर की दहलीज पर डालेंगे और आशीर्वाद देंगे। वहीं बच्चों को उपहार स्वरूप गुड़, चांवल और सिक्के प्रदान किये जायेंगे।

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