Magh Mela Uttarkashi: भारत विविधता और परंपराओं का देश है। यहां के पर्व और मेले न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करते हैं, बल्कि समाज को एकजुटता और सामूहिकता का संदेश भी देते हैं। उत्तराखंड का उत्तरकाशी जिला, हिमालय की गोद में बसा एक सुंदर और पवित्र स्थल है। इस जिले में हर साल माघ महीने में आयोजित होने वाला ‘माघ मेला’ अपनी अनूठी परंपराओं, धार्मिक महत्त्व और सांस्कृतिक रंगारंग कार्यक्रमों के लिए प्रसिद्ध है। जहाँ देव डोलियां नृत्य करती हैं और मेले का शुभारम्भ करती हैं। यह मेला न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि देश-विदेश से आए पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए भी विशेष आकर्षण का केंद्र होता है।
उत्तरकाशी में लगने वाले माघ मेले का पौराणिक नाम ‘बाड़ाहाट कु थौलू’ है, जिसका अर्थ है-बाड़ाहाट का मेला। यह मेला हर साल मकर संक्रांति यानि माघ महीने के पहले दिन से शुरू होता है और 10 दिन तक चलता है। जहाँ पाटा-संग्राली गांवों से कंडार देवता और अन्य देव डोलियों के उत्तरकाशी पहुंचने पर भव्य शुभारम्भ होता है। जहाँ रंग-बिरंगी देव डोलियों के मिलन, धार्मिक अनुष्ठान एवं सांस्कृतिक प्रदर्शनों से हर कोई भावविभोर हो उठता है। यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु भागीरथी के पवित्र जल में डुबकी लगाकर अपने ईष्ट देवों के दर्शन करने के लिए उमड़ पड़ते हैं।
माघ मेले का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस मेले का सम्बन्ध महाभारत काल से है। कहा जाता है यहाँ पांडव अपने वनवास के दौरान पहुंचे थे और भागीरथी में गंगा स्नान कर पूजा अर्चना की थी। वहीं इसका धार्मिक महत्व भागीरथी नदी और उत्तरकाशी में स्थित विश्वनाथ मंदिर से जुड़ा हुआ है। उत्तरकाशी को ‘छोटा काशी’ कहा जाता है, क्योंकि इसका धार्मिक महत्व वाराणसी के समान है। माघ महीने को हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र माना जाता है। इस दौरान गंगा स्नान, दान, और धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व है।
मेले के दौरान यहाँ बागागढ़ी पट्टी की आराध्य देव हरिमहराज का विशेष आह्वान होता है। श्रद्धालुओं द्वारा अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिये सीटी बजाने की परम्परा है, जिससे वे प्रसन्न होकर अपने डांगरों में अवतरित होते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार हरिमहराज भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का रूप हैं और हरिगिरि पर्वत के कुब्ज नामक स्थान पर निवास करते हैं। वहीं हुणेश्वर देव को हरिमहराज का भाई माना जाता है। कहते हैं कालांतर में दोनों भाई एक दूसरे को सीटी बजाकर संकेत देते थे। तभी से यहाँ सीटी बजाने की परम्परा चली आ रही है।
माघ मेले का ऐतिहासिक महत्व
धार्मिक महत्व के साथ-साथ उत्तरकाशी के माघ मेले (Magh Mela Uttarkashi) का अपना ख़ास ऐतिहासिक महत्व भी है। यह मेला भारत और तिब्बत के लोगों के बीच होने वाले व्यापार का साक्षी रहा है। सन 1962 तक मेले में तिब्बत के व्यापारी हर साल माघ मेले में पहुँचते थे और अपने यहाँ का नमक, मसाले, हिमालयी जड़ी-बूटियां, सोना, घोड़े आदि को बेचने के लिए लाते थे, वहीं बदले में यहाँ से गेहूं, धान आदि को ले जाते थे। सन 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सीमायें बंद हो जाने के बाद यह व्यापार भी बंद हो गया लेकिन आज भी इस पौराणिक और ऐतिहासिक मेले का वार्षिक आयोजन जारी है। जहाँ धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ व्यापारिक और सांस्कृतिक गतिविधियां स्थानीय स्तर पर जारी हैं। स्थानीय लोग अपने ऊन और हस्तनिर्मित उत्पादों का अच्छा व्यापार करते हैं। यह मेला यहाँ के लोगों के लिए अच्छा रोजगार करने का मौका देता है।
मेले की प्रमुख गतिविधियाँ
मकर संक्रांति के अवसर पर लगने वाले यह माघ मेले में धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियाँ भी महत्वपूर्ण होती हैं।
- स्नान और पूजा-अर्चना: धार्मिक मान्यताओं में भागीरथी नदी के तट पर माघ महीने में स्नान करना अत्यंत पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु दूर-दूर से यहां गंगा स्नान के लिए आते हैं और विश्वनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं।
- लोक संस्कृति का प्रदर्शन : मेले में उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति की झलक मिलती है। जौनसारी लोकगीत और रासौ-तांदी नृत्य मेले का मुख्य आकर्षण होते हैं। स्थानीय वाद्य यंत्रों जैसे दमाऊ, डौंर, और रणसिंघा की ध्वनि से वातावरण गुंजायमान हो उठता है।
- स्थानीय हस्तशिल्प और उत्पादों की प्रदर्शनी : मेले में स्थानीय कारीगर और व्यापारियों द्वारा हस्तशिल्प, ऊनी वस्त्र, लकड़ी के खिलौने, और पारंपरिक आभूषणों की प्रदर्शनी लगाई जाती है। यह मेले को व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक प्रमुख केंद्र बनाता है।
- खेलकूद और प्रतियोगिताएँ : मेले में पारंपरिक खेलकूद और प्रतियोगिताएँ भी होती हैं, जैसे कुश्ती, तीरंदाजी, और रस्साकशी। ये गतिविधियाँ मेले में जोश और ऊर्जा का संचार करती हैं।
- भोजन और व्यंजन : मेले में स्थानीय व्यंजनों का स्वाद लेना भी एक खास अनुभव है। उत्तरकाशी के स्थानीय व्यंजनों के अलावा झंगोरा की खीर, मंडुआ की रोटी, और आलू के गुटके पर्यटकों और स्थानीय लोगों को खूब भाते हैं।
मेले का सामाजिक और आर्थिक महत्व
- माघ मेला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सामाजिक और आर्थिक पहलू भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- स्थानीय समुदाय की भागीदारी: यह मेला क्षेत्रीय समुदाय के लिए एक ऐसा मंच है, जहां वे अपनी कला, संस्कृति, और परंपराओं को प्रदर्शित कर सकते हैं।
- व्यापार और रोजगार: मेले के दौरान स्थानीय व्यापारियों और कारीगरों को अपने उत्पाद बेचने और आय अर्जित करने का अवसर मिलता है।
- पर्यटन को प्रोत्साहन: माघ मेला में हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं, जिससे उत्तरकाशी और आसपास के इलाकों में पर्यटन को बढ़ावा मिलता है।
मेले में आने का समय
Magh Mela Uttarkashi Timing : उत्तरकाशी में माघ मेला मकर संक्रांति यानी हर साल 14 या 15 जनवरी से प्रारम्भ होता है, जो यहाँ 10 दिन तक चलता है। इस साल माघ मेला मंगलवार, 14 जनवरी 2025 से उत्तरकाशी में लगेगा।
कैसे पहुंचें
- हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट (देहरादून) है, जो उत्तरकाशी से लगभग 170 किलोमीटर दूर है।
- रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जहां से सड़क मार्ग द्वारा उत्तरकाशी तक पहुंचा जा सकता है।
- सड़क मार्ग: उत्तरकाशी सड़क मार्ग से राज्य के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। मेला स्थल शहर से करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर है।
निष्कर्ष
उत्तरकाशी में लगने वाला माघ मेला धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं का एक अद्भुत उदाहरण है। यह मेला न केवल श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है, बल्कि उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को भी संरक्षित और प्रचारित करता है। मेले का आयोजन स्थानीय लोग, जिला प्रशासन और पर्यटकों के सामूहिक प्रयासों का परिणाम है, जो इसे हर साल सफल बनाते हैं।
अगर आप उत्तराखंड की जीवंत संस्कृति और अद्वितीय परंपराओं को नजदीक से देखना चाहते हैं, तो उत्तरकाशी के माघ मेले में जरूर आईये।