Purnagiri Mandir | पूर्णागिरि मंदिर-जहाँ गिरी थी माता पार्वती की नाभि।

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Purnagiri Mandir

Purnagiri Mandir : उत्तराखंड स्थित चम्पावत जिले के टनकपुर तहसील से 22 किमी दूर समुद्र तल से करीब पांच हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित मां पूर्णागिरि मंदिर (Purnagiri Mandir) आस्था और शक्ति का प्रतीक है। मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं की शक्ति स्वरूपा मां सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

पूर्णागिरि मंदिर में देश-विदेश से प्रतिवर्ष करीब तीस लाख श्रद्धालु मां के दर्शन करने पहुंचते हैं। नवरात्र में मेले के दौरान मां के भक्तों की यहां एक से दो किमी लंबी लाइन लग जाती है। बावजूद इसके घंटों इंतजार के बाद श्रद्धालु मां के दरबार में प्रसाद, लाल चुनरी, घंटियां, नारियल, सिंदूर आदि चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं। पूर्णागिरि धाम के नीचे काली मंदिर व भैरव मंदिर है। माता के दर्शन के बाद तीर्थयात्री यहां मां कालिका व भैरव बाबा के दर्शन करते हैं। मां की पहाड़ी के ठीक नीचे बह रही शारदा नदी और आसपास ऊंचे-ऊंचे पहाड़ प्राकृतिक सौंदर्य की अनुपम छटा बिखेरते हैं।

मान्यता है कि माता पार्वती द्वारा राजा प्रजापति के यज्ञ में आहुति देने के बाद भगवान शिव उनके शव को लेकर आकाश मार्ग से गुजरते हैं। माना जाता है कि 51 स्थानों पर पार्वती के अंग गिरे थे। इसमें पूर्णागिरी धाम में माता पार्वती की नाभि गिरी थी। आज भी मंदिर में नाभि स्थल को आसानी से देखा जा सकता है।

प्रसिद्ध मां पूर्णागिरि धाम में देवी के चमत्कारिक गाथा से जुड़े तीन और छोटे-छोटे मंदिर भी हैं जिन पर लोगों की अटूट आस्था है। पूर्णागिरि पर्वत चोटी पर विराजमान देवी ने कई ऐसे चमत्कार भी किए जो लोगों को मां पूर्णागिरि की दैवीय शक्ति का अहसास कराते हैं।
धाम की ओर रवाना होने से पहले देवी के द्वारपाल के रूप में भैरव मंदिर में बाबा भैरव नाथ की पूजा करने की परंपरा है। माना जाता है कि धाम के द्वार पर बाबा भैरवनाथ ही देवी के दर्शन के लिए जाने की अनुमति देते हैं। इसके बाद श्रद्धालु सीधे मुख्य मंदिर में देवी के दर्शन को रवाना होते हैं।
दर्शन कर लौटते वक्त रास्ते में स्थापित महाकाली और झूठा मंदिर की पूजा की जाती है। पुजारी बताते हैं कि पूर्व में पूर्णागिरि पर्वत सोने का था, जिसे लूटने आए मुगलों का देवी ने नाश कर पर्वत को पत्थर का बना दिया था।

पौराणिकता : मां पूर्णागिरि मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। मान्यता है कि गुजरात निवासी श्री चंद्र तिवारी ने संम्वत 1621 में मुगलों के अत्याचार से दुखी होकर चम्पावत में चंद वंशीय राजा ज्ञान चंद के दरबार में शरण ली थी। उसी समय एक रात्रि उन्हें सपने में देवी मां पूर्णागिरि ने पूजा स्थल बनाने का आदेश दिया। मां के आदेश का पालन कर श्री तिवारी ने संम्वत 1632 में मां पूर्णागिरि धाम के मंदिर की स्थापना कर पूजा पाठ शुरू कर किया, जो आज भी चल रहा है। मां पूर्णागिरि धाम के दर्शन के बाद पड़ोसी देश नेपाल के महेन्द्र नगर व ब्रह्मदेव स्थित सिद्घनाथ मंदिर के दर्शन के बाद ही मां पूर्णागिरि धाम की यात्र सफल मानी जाती है। मान्यता है कि सिद्घनाथ बाबा मां पूर्णागिरि के अन्नय भक्त थे। उनकी भक्ति से खुश होकर मां पूर्णागिरि ने उन्हें वरदान दिया था कि उनके दर्शन के बाद सिद्घनाथ मंदिर के दर्शन पर ही धर्म यात्र सफल मानी जाएगी। इससे यहां यात्र पर आने वाले भक्त सिद्धनाथ जरूर जाते हैं।

राक्षस के वध को लिया था अवतार

भगवान शिव की आराध्य देवी पूर्णागिरि के अनेकों-अनेक चत्मकारिक प्रमाण है, जिन पर लोगों की अटूट आस्था और श्रद्धा है। दर्शन को आने वाले हर भक्त की देवी मां मनोकामना अवश्य पूर्ण करती है। यहीं वजह है कि उत्तर भारत के अलावा देश के कोने-कोने और पड़ोसी देश नेपाल से भी बड़ी संख्या में मां पूर्णागिरि के दर्शन को पहुंचते हैं।
पूर्णागिरि धाम के टुन्यास नामक क्षेत्र में टुन्ना, शुंभ-निशुंभ नामक राक्षसों ने आतंक मचा रखा था। देवी-देवता भी राक्षसों के आतंक से आतंकित थे। तब मां पूर्णागिरि ने महाकाली का रूप धारण किया और टुन्ना राक्षस का वध कर देवताओं को उसके आतंक से निजात दिलाई थी।

मन्नत से जुड़ी है झूठा मंदिर की गाथा

मां पूर्णागिरि धाम में स्थापित झूठा मंदिर की गाथा मन्नत पर देवी के चमत्कार से जुड़ी है। कहते हैं कि एक सेठ ने पुत्र प्राप्ति के लिए देवी से मन्नत मांग और मन्नत पूरी होने पर सोने का मंदिर चढ़ाने का वचन दिया था। देवी की कृपा से सेठ को पुत्र प्राप्त हुआ, मगर सोने का मंदिर चढ़ाने में उसे लालच आ गया। वह तांबे के मंदिर में सोने की पालिश चढ़ाकर लाया। मंदिर ले जा रहे मजदूरों ने विश्राम के लिए रास्ते में मंदिर जमीन में रखा तो बाद में मंदिर किसी से नहीं उठाया जा सका और सेठ को मंदिर वहीं पर छोड़कर वापस लौटना पड़ा। ( Purnagiri Mandir Tanakpur )


पूर्णागिरी कैसे जाएं?

पूर्णागिरि मंदिर जाने के लिए आप टनकपुर तक ट्रेन द्वारा जा सकते हैं। यदि आप बस से पूर्णागिरि मंदिर जाना चाहते हैं तो अंतरराज्यीय बस अड्डा आनंदविहार दिल्ली से टनकपुर तक की बस आसानी से उपलब्ध रहती है। टनकपुर से मंदिर की दूरी करीब 22 किलोमीटर है। यहाँ से आपको स्थानीय टैक्सी आसानी से मिल जाती हैं। ऊंची पहाड़ी पर स्थित माँ पूर्णागिरि के मंदिर तक पहुँ चने के लिए करीब दो किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़नी होती है।

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