जागेश्वर धाम उत्तर भारत के एक प्रमुख शिव मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित है। मान्यता है कि यहां शिव जागृत रूप में विद्यमान हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले शिव लिंग का पूजन जागेश्वर से ही प्रारंभ हुआ।
यह मंदिर प्राचीन कैलाश मानसरोवर मार्ग में स्थित है। प्राचीन काल से ही यह स्थान काफी प्रसिद्ध रहा है। इसी कारण मानसरोवर यात्री यहां पूजा अर्चना करने के बाद आगे बढ़ते थे।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 38 किमी दूर देवदार के घने वनों के बीच स्थित जागेश्वर धाम का प्राचीन काल से ही काफी महत्व है।
पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि भगवान शिव जागेश्वर के निकट दंडेश्वर में तपस्या कर रहे थे। इसी बीच सप्तऋषियों की पत्नियां वहां पहुंचीं और शिव के दिगंबर रूप में मोहित होकर मूर्छित हो गईं।
सप्तऋषि उनकी खोज में वहां पहुंचे तो उन्होंने नाराज होकर भगवान शिव को पहचाने बगैर लिंग पतन का श्राप दे दिया। जिससे पूरे ब्रह्मांड में उथल-पुथल मच गई।
बाद में सभी देवताओं ने किसी तरह शिव को मनाया और जागेश्वर में उनके लिंग की स्थापना की गई। मान्यता है कि तभी से शिव लिंग की पूजा शुरू हुई।
जागेश्वर धाम में मंदिरों का निर्माण और पुनरोद्धार सातवीं से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य माना जाता है। यहां स्थापित शिव लिंग बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक है। यह भी मान्यता है कि जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने इस स्थान का भ्रमण किया और इस मंदिर की मान्यता को पुनरस्थापित किया।